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Home » दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने के विरोध में नैनीताल हाईकोर्ट में कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर कोर्ट सख्त, केंद्र सरकार को निर्देश !
उत्तराखण्ड

दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने के विरोध में नैनीताल हाईकोर्ट में कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर कोर्ट सख्त, केंद्र सरकार को निर्देश !

swadeshnewsukBy swadeshnewsukJune 26, 2025Updated:July 16, 2025No Comments
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दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने के विरोध में नैनीताल हाईकोर्ट में कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर कोर्ट सख्त, केंद्र सरकार को निर्देश !

दून घाटी के 15 लाख निवासियों और पर्यावरण को बचाने हेतु कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर मा० हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार जवाब तलब !

आज माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में उत्तराखंड कांग्रेस के प्रवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने दून घाटी की अधिसूचना 1989 को केंद्र सरकार द्वारा निष्क्रिय करनें हेतु जो पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा शासनादेश दि. 13 मई 2025 के विरोध में और दून घाटी को बचाने हेतु जनहित याचिका की सुनवाई हुई और माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका में सख्त कार्यवाही करी और केंद्र सरकार को निर्देशित किया।

जैसा की विदित है की दून घाटी अधिसूचना 1989 में 01 फरवरी 1989 को दून घाटी क्षेत्र को पर्यावरण के विषय पर संवेदनशील होने के कारण lime stone माइनिंग और Air Quality Index (AQI) के सुधार हेतु सुप्रीम कोर्ट के 30 अगस्त 1988 के निर्देशानुसार दून घाटी अधिसूचना का प्रावधान किया गया था। जिससे देहरादून और उसके आसपास के क्षेत्र मसूरी, सहसपुर, डोईवाला, ऋषिकेश, विकासनगर, और इनके आस पास के इलाकों के पर्यावरण को बचाने के लिए किया गया है।

किंतु राज्य सरकार के 4 जुलाई 2023 के प्रस्ताव पर पर्यावरण वन व जल वायु मंत्रालय ( MoEF) द्वारा 21.12.2023 को दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने हेतु शासनादेश का प्रारूप और 13 मई 2025 को अंततः शासनादेश जारी किया गया जिस पर राज्य सरकार को दून घाटी में प्रतिबंधित भारी औद्योगिक गतिविधि को संचालित करने का अधिकार भी दिया गया जैसे स्लॉटर हाउस, क्रशर माइनिंग और अन्य RED Category की औद्योगिक गतिविधि हेतु। उल्लेखनीय है की राज्य की डबल इंजन सरकार ने पुनः प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी के निर्देश “NCAP से उल्टा” यह कार्य दून घाटी अधिसूचना हटाने का काम किया है क्योंकि भारत सरकार द्वारा 2019 में National Clean Air Program ( NCAP) शुरू किया गया जिसमे भारत के 131 उन शहरों को चयनित किया गया जिनकी आबो–हवा में AQI प्रदूषण की मात्रा अधिक थी और उनके सुधार हेतु अबतक भारत सरकार ने 12,286 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया गया है।

उल्लेखनीय है की NCAP में उत्तराखंड के 3 शहर देहरादून, ऋषिकेश और काशीपुर को शामिल किया गया और AQI पर्यावरण सुधार हेतु 2021 में लगभग 68 करोड़ रुपए का बजट भी भारत सरकार द्वारा राज्य सरकार को जारी किया और देहरादून और ऋषिकेश दोनो ही पूर्णत: दून घाटी क्षेत्र के अंतर्गत आते है और इसके उलट राज्य सरकार यहां दून घाटी अधिसूचना हटाने का कार्य कर रही है। भारत सरकार के विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार “देहरादून का प्रदूषण स्तर देश के 10 सबसे बुरे शहरों” में आता है जिसकी PM10 की मात्रा “Permissible limit से तीन गुना” अधिक है।

उल्लेखनीय है की उत्तराखंड सरकार ने दून घाटी अधिसूचना 1989 को हटाने का जो प्रावधान किया है उसके विरोध में याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी को 8 फरवरी 2024 व 04 मार्च 2025 को प्रत्यावेदन दिए और सुप्रीम कोर्ट के आदेश दि० 30.08.1988, दून वैली एक्ट दि० 01.02.1989 व NCAP प्रोग्राम भारत सरकार की रिपोर्ट 6 फरवरी 2024 का उल्लेख करते हुए प्रधान मंत्री कार्यालय का दून घाटी को बचाने के लिए ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 1988 के आदेश व केंद्र सरकार के NCAP प्रोग्राम को अनदेखा करते हुए अधिसूचना दून घाटी को हटाने का निर्णय लिया है जिससे देहरादून और आस पास के क्षेत्र में भारी पर्यावरण नुकसान व प्रदूषण की मात्रा बहुत बढ़ जाएगी। इस पत्र के क्रम में प्रधान मंत्री कार्यालय हस्ताक्षेप के बाद MoEF ने वन विभाग उत्तराखंड को इस विषय में रिपोर्ट जारी करने के लिए 13 फरवरी 2024 व 21 मार्च 2025 को पत्र लिखा और यह विषय 18 महीनों तक जैसे-तैसे लंबित रहा किंतु अब 13 मई 2025 को राज्य सरकार ने दून घाटी में Industrial Categorisation समाप्त कर दिया जिससे दून घाटी अधिनियम 1989 बहुत शिथिल और कमजोर हो गया है ।

याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने कहा की हम देहरादून, मसूरी, सहसपुर, डोईवाला, ऋषिकेश , विकासनगर और आसपास का क्षेत्र जो दून घाटी क्षेत्र के अंतर्ग्रत आता है, उसको बचाने की लड़ाई में मा० हाईकोर्ट ने आज बड़ा कदम लिया है और केंद्र सरकार को निर्देशित किया है। प्रधान मंत्री कार्यालय के हस्ताक्षेप के बाद भी यदि उत्तराखंड सरकार जाग नही रही है तो ये राज्य सरकार का दुर्भाग्यपूर्ण रवैया है, उत्तराखंड में पहले ही रैणी, जोशीमठ, उत्तरकाशी और टिहरी बांध के आसपास व अन्य कई इलाकों में कई बार आपदा आ चुकी है और Seismic Zone 4 और Fault Lines से लैस दून घाटी में पहले से ही अत्यधिक जनसंख्या का दबाव है जिससे आए दिन पर्यावरण में बदलाव हो रहा है। राज्य सरकार ने भारत सरकार को जो गुमराह करने के लिये तथ्य दिए है उसमें दून घाटी में वंचित Slaughter House, Red Zone Category की उद्योग के स्थापना हेतु प्रस्ताव दीया है जोकि सुप्रीम कोर्ट के 30 अगस्त 1988, दून घाटी 01 फरवरी 1989 व NCAP 2019 के मूल अवधारणा के विरुद्ध है। इस दून घाटी में उत्तराखंड की 15 लाख से अधिक की जनता निवास करती है जिनके जान को जोखिम में डालकर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को गुमराह कर दून घाटी को निष्क्रिय करने का निर्णय लिया है, जिसके खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा ।

जनहित याचिका के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि मा० हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायाधीश आलोक माहरा युक्त पीठ ने इस याचिका के दून घाटी अधिनियम 1989 को निष्क्रिय करने में याचिकाकर्ता के तथ्यों के अनुरूप केंद्र सरकार को निर्देश दिये कि दून घाटी के विषय में मा० सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के क्रम में ही केंद्र सरकार अग्रेतर कार्यवाही करे। माननीय हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देशित किया कि वह तथ्यों सहित पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार को दून घाटी के 13 मई 2025 के शासनादेश के संबंध में वार्ता करें और दून घाटी में हुए नुकसान व मौजूदा तथ्यों से केंद्र सरकार को अवगत कराए। 27 जून 2025 को पुनः सुनवाई की तिथि निर्धारित की गई है।

दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने के विरोध में नैनीताल हाईकोर्ट में कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर कोर्ट सख्त, केंद्र सरकार को निर्देश ! 

 दून घाटी के 15 लाख निवासियों और पर्यावरण को बचाने हेतु कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर मा० हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार जवाब तलब ! 


आज माननीय हाईकोर्ट नैनीताल  में उत्तराखंड कांग्रेस के प्रवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने दून घाटी की अधिसूचना 1989 को केंद्र सरकार द्वारा निष्क्रिय करनें हेतु जो पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा शासनादेश दि. 13 मई 2025 के विरोध में और दून घाटी को बचाने हेतु जनहित याचिका की सुनवाई हुई और माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका में सख्त कार्यवाही करी और केंद्र सरकार को निर्देशित किया।

जैसा की विदित है की दून घाटी अधिसूचना 1989 में 01 फरवरी 1989 को दून घाटी क्षेत्र को पर्यावरण के विषय पर संवेदनशील होने के कारण  lime stone माइनिंग और Air Quality Index (AQI) के सुधार हेतु सुप्रीम कोर्ट के 30 अगस्त 1988 के निर्देशानुसार दून घाटी अधिसूचना का प्रावधान किया गया था। जिससे देहरादून और उसके आसपास के क्षेत्र मसूरी, सहसपुर, डोईवाला, ऋषिकेश, विकासनगर, और इनके आस पास के इलाकों के पर्यावरण को बचाने के लिए किया गया है।

किंतु राज्य सरकार के 4 जुलाई 2023 के प्रस्ताव पर पर्यावरण वन व जल वायु मंत्रालय ( MoEF) द्वारा 21.12.2023 को दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने हेतु शासनादेश का प्रारूप और 13 मई 2025 को अंततः शासनादेश जारी किया गया जिस पर राज्य सरकार को दून घाटी में प्रतिबंधित भारी औद्योगिक गतिविधि को संचालित करने का अधिकार भी दिया गया जैसे स्लॉटर हाउस, क्रशर माइनिंग और अन्य RED Category की औद्योगिक गतिविधि  हेतु। उल्लेखनीय है की राज्य की डबल इंजन सरकार ने पुनः प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी के निर्देश "NCAP से उल्टा" यह कार्य दून घाटी अधिसूचना हटाने का काम किया है क्योंकि भारत सरकार द्वारा 2019 में  National Clean Air Program ( NCAP) शुरू किया गया जिसमे भारत के 131 उन शहरों को चयनित किया गया जिनकी आबो–हवा में AQI प्रदूषण की मात्रा अधिक थी और उनके सुधार हेतु अबतक भारत सरकार ने 12,286 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया गया है।

उल्लेखनीय है की NCAP में उत्तराखंड के 3 शहर देहरादून, ऋषिकेश और काशीपुर को शामिल किया गया और AQI पर्यावरण सुधार हेतु 2021 में लगभग 68 करोड़ रुपए का बजट भी भारत सरकार द्वारा राज्य सरकार को जारी किया और देहरादून और ऋषिकेश दोनो ही पूर्णत: दून घाटी क्षेत्र के अंतर्गत आते है और इसके उलट राज्य सरकार यहां दून घाटी अधिसूचना हटाने का कार्य कर रही है। भारत सरकार के विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार “देहरादून का प्रदूषण स्तर देश के 10 सबसे बुरे शहरों” में आता है जिसकी PM10 की मात्रा "Permissible limit से तीन गुना" अधिक है। 

 उल्लेखनीय है की उत्तराखंड सरकार ने दून घाटी अधिसूचना 1989 को हटाने का जो प्रावधान किया है उसके विरोध में याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी को 8 फरवरी 2024 व 04 मार्च 2025 को प्रत्यावेदन दिए और सुप्रीम कोर्ट के आदेश दि० 30.08.1988, दून वैली एक्ट दि० 01.02.1989 व NCAP प्रोग्राम भारत सरकार की रिपोर्ट 6 फरवरी 2024 का उल्लेख करते हुए प्रधान मंत्री कार्यालय का दून घाटी को बचाने के लिए ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 1988 के आदेश व केंद्र सरकार के NCAP प्रोग्राम को अनदेखा करते हुए अधिसूचना दून घाटी को हटाने का निर्णय लिया है जिससे देहरादून और आस पास के क्षेत्र में भारी पर्यावरण नुकसान व प्रदूषण की मात्रा बहुत बढ़ जाएगी। इस पत्र के क्रम में प्रधान मंत्री कार्यालय हस्ताक्षेप के बाद MoEF ने वन विभाग उत्तराखंड को इस विषय में रिपोर्ट जारी करने के लिए 13 फरवरी 2024 व 21 मार्च 2025 को पत्र लिखा और यह विषय 18 महीनों तक जैसे-तैसे लंबित रहा किंतु अब 13 मई 2025 को राज्य सरकार ने दून घाटी में Industrial Categorisation समाप्त कर दिया जिससे दून घाटी अधिनियम 1989 बहुत शिथिल और कमजोर हो गया है ।

 याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने कहा की हम देहरादून, मसूरी, सहसपुर, डोईवाला, ऋषिकेश , विकासनगर और आसपास का क्षेत्र जो दून घाटी क्षेत्र के अंतर्ग्रत आता है, उसको बचाने की लड़ाई में मा० हाईकोर्ट ने आज बड़ा कदम लिया है और केंद्र सरकार को निर्देशित किया है। प्रधान मंत्री कार्यालय के हस्ताक्षेप के बाद भी यदि उत्तराखंड सरकार जाग नही रही है तो ये राज्य सरकार का दुर्भाग्यपूर्ण रवैया है, उत्तराखंड में पहले ही रैणी, जोशीमठ, उत्तरकाशी और टिहरी बांध के आसपास व अन्य कई इलाकों में कई बार आपदा आ चुकी है और Seismic Zone 4 और Fault Lines से लैस दून घाटी में पहले से ही अत्यधिक जनसंख्या का दबाव है जिससे आए दिन पर्यावरण में बदलाव हो रहा है। राज्य सरकार ने भारत सरकार को जो गुमराह करने के लिये तथ्य दिए है उसमें दून घाटी में वंचित Slaughter House, Red Zone Category की उद्योग के स्थापना हेतु प्रस्ताव दीया है जोकि सुप्रीम कोर्ट के 30 अगस्त 1988, दून घाटी 01 फरवरी 1989 व NCAP 2019 के मूल अवधारणा के विरुद्ध है। इस दून घाटी में उत्तराखंड की 15 लाख से अधिक की जनता निवास करती है जिनके जान को जोखिम में डालकर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को गुमराह कर दून घाटी को निष्क्रिय करने का निर्णय लिया है, जिसके खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा । 

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