रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु ( आरसीबी ) की शानदार जीत के बाद आयोज्य जश्न के मातम, हाहाकार एवं दर्दनाक मंजर ने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था की पोल ही नहीं खोली बल्कि सत्ता एवं खेल व्यवस्थाओं के अमानवीय चेहरे को भी बेनकाब किया है। आरसीबी विक्ट्री परेड के दौरान चिन्नास्वामी स्टेडियम के पास अचानक मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई जबकि 50 गंभीर रूप से घायल हुए हैं। भगदड़ में लोगों की जो दुखद मृत्यु हुई, यह राज्य प्रायोजित एवं प्रोत्साहित हत्या है। पुलिस का बंदोबस्त कहां था? चीख, पुकार और दर्द और क्रिकेट सितारों को देखने की दीवानगी एक ऐसा दर्दनाक एवं खौफनाक वाकया है जो सुदीर्घ काल तक पीड़ित और परेशान करेगा। प्रशासन की लापरवाही, अत्यधिक भीड़, निकासी मार्गों की कमी और अव्यवस्थित प्रबंधन ने इस त्रासदी को जन्म दिया। यह घटना कोई अपवाद नहीं है, बल्कि हाल के वर्षों में दुनिया भर में सामने आई ऐसी घटनाओं की कड़ी का नया खौफनाक मामला है, जहाँ भीड़ नियंत्रण में चूक एवं प्रशासन एवं सत्ता का जनता के प्रति उदासीनता का गंभीर परिणाम एवं त्रासदी का ज्वलंत उदाहरण है।
क्रिकेट की दुनिया के सबसे बड़े वार्षिक उत्सव इंडियन प्रीमियर लीग के फाइनल मुकाबले में रॉयल चैलेंजर्स बंेगलुरु ने 18वें संस्करण में आईपीएल खिताब जीत लिया। इस कामयाबी से आईपीएल से विदाई ले रहे विराट कोहली के प्रति जन-उत्साह उमड़ा। लेकिन इस जीत के जश्न की चमक में प्रशंसकोें की चीखें एवं आहें का होना और उसे खिलाडियों एवं राजनेताओं द्वारा नजरअंदाज करना, अमानवीयता की चरम पराकाष्ठा है। दुर्घटना होने एवं आम लोगों की मौतें हो जाने के बावजूद जश्न जारी रहना, दुखद एवं शर्मनाक है। प्रशंसकों की अहमियत को कमतर आंकने के इस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम ने न केवल राजनेताओं को बल्कि खिलाड़ियों को भी दागी किया है। घटना ने एक बार फिर हमारे अवैज्ञानिक व लाठी भांजने वाले भीड़ प्रबंधन की ही पोल खोली है। इस जीत के जश्न में हिस्सा लेने आई भीड़ का एक लाख तक होने का अनुमान था। लेकिन लंबे अंतराल के बाद मिली जीत ने लोगों के उत्साह को इस स्तर तक पहुंचा दिया कि स्टेडियम के आसपास तीन लाख से अधिक लोगों की भीड़ जमा हो गई। खुद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का मौत की खबरें मिलने के बावजूद खिलाडियों के साथ जश्न मनाने में जुटा रहना उनकी प्रचार भूख का भौंडा उदाहरण है। जब मौत के बाद वहां पसरा मातम देखकर सब स्तब्ध थे तो सिद्धारमैया क्यों अपने पद की गरिमा एवं जिम्मेदारी को धूमिल कर रहे थे? सोचिए लोगों की मौत के बाद अगर एक मिनट भी जश्न मना, तालियां बजीं, ठहाके लगे, फ्लाइंग किस दिए गए तो इससे ज्यादा अमानवीयता और निर्दयता क्या हो सकती है? जब खुद सरकार एक जश्न का मातम में बदलने का नेतृत्व करेगी तो आम लोगों का कांप उठना स्वाभाविक है।
बहरहाल, आईपीएल का आयोजन लगातार नई ऊंचाइयों को छूता हुआ व्यावसायिक क्रिकेट को नई ऊंचाइयां देने में जरूर सफल रहा है। फटाफट क्रिकेट के दुनिया के सबसे बड़े उत्सव में भारत के दो सर्वकालिक महान खिलाड़ियों विराट कोहली व एमएस धोनी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। अंततः विराट कोहली का आईपीएल खिताब जीतने का लंबा इंतजार इस जीत के साथ खत्म हुआ। लेकिन धोनी पांच बार की विजेता चेन्नई सुपरकिंग को जीत का खिताब दिलाने से चूक गए। एक तरह से आईपीएल क्रिकेट से कोहली की यह शानदार विदाई साबित हुई। वे इस गरिमामय विदाई के हकदार भी थे। उनके करोड़ों प्रशंसकों की कतारे देख कर राजनेता भी उनकी साथ मंच सांझा करने को उत्सुक दिखे, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, अन्य मंत्री एवं प्रशासनिक अधिकारी भी इसी फिराक में अपनी जिम्मेदारियों को भूल जश्न मनाते रहे और आमजनता अव्यवस्थाओं के कारण मौत में समाती रही। यह ऐसी दुखद घटना है जो अपनी निर्दयता एवं क्रूरता के लिये लम्बे समय तक कौंधती रहेगी। सिद्धारमैया के इस घटना की तुलना प्रयागराज कुंभ में हुए हादसे के करना उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को ही दर्शा रही है।
भारत में भीड़ से जुड़े हादसे अनेक आम लोगों के जीवन का ग्रास बनते रहे हैं। धार्मिक आयोजनों हो या खेल प्रतियोगिता, राजनीतिक रैली हो या सांस्कृतिक उत्सव लाखों लोगों को आकर्षित करते हैं, जहाँ भीड़ प्रबंधन की मामूली चूक भयावह त्रासदी में बदलते हुए देखी जाती रही है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 में दक्षिण कोरिया के इटावन हैलोवीन समारोह में अत्यधिक भीड़ के कारण 150 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। इसी तरह, वर्ष 2015 में मक्का में हज के दौरान मची भगदड़ में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश के रत्नागढ़ मंदिर में ढाँचागत कमियों से प्रेरित भगदड़ के कारण 115 लोगों की मौत हो गई थी। हालही में महाकुंभ के दौरान नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन एवं प्रयागराज में हुए हादसे में भी अनेकों लोगों की जान गयी। आग, भूकंप, या आतंकी हमलों जैसी आपातकालीन स्थितियाँ में भी भीड़ प्रबंधन की पौल खुलती रही है। आखिर दुनिया के सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश में हम भीड़ प्रबंधन को लेकर इतने उदासीन क्यों है? बड़े आयोजनों-भीड़ के आयोजनों में भीड़ बाधाओं को दूर करने के लिए, भीड़ प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार, सुरक्षाकर्मियों को पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान करना, जन जागरूकता बढ़ाना और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना अब नितान्त आवश्यक है।
रेलवे स्टेशन, मंदिर और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भीड़ को संभालने के लिए पर्याप्त जगह और रास्ते नहीं हैं। कुछ स्थानों पर निकास मार्ग सीमित हैं या अनुपयुक्त हैं, जो भगदड़ का खतरा बढ़ाते हैं। भीड़ प्रबंधन के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित एवं दक्ष सुरक्षाकर्मी नहीं हैं, जिससे सुरक्षा चूक होने की संभावना बढ़ जाती है। भीड़ प्रबंधन के लिए आधुनिक तकनीकों, जैसे कि एआई आधारित निगरानी और ड्रोन कैमरे का उपयोग सीमित है। लोगों को आपातकालीन निकास मार्गों, भीड़ नियंत्रण नियमों, और सुरक्षा उपायों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। गलत सूचना या अचानक दहशत से भीड़ अनियंत्रित हो सकती है और भगदड़ मच सकती है। भीड़ का व्यवहार कई बार अनियंत्रित हो जाता है, खासकर धार्मिक, खेल एवं सिनेमा आयोजनों में, जहां लोग भावनाओं में बहकर आगे निकलने की होड़ में लग जाते हैं। कई बार आयोजनकर्ताओं और पुलिस के बीच समन्वय की कमी होती है, जिससे सुरक्षा चूक हो सकती है। भीड़ प्रबंधन केवल विधि-व्यवस्था बनाए रखने का विषय नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन की सुरक्षा, सार्वजनिक स्थानों की संरचना और आपातकालीन स्थितियों से निपटने की रणनीतियों से गहनता से संबद्ध है। दुर्भाग्यवश, कई बार आयोजकों और प्रशासनिक एजेंसियों द्वारा पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं किये जाते, जिससे जानमाल की हानि होती है। इस परिदृश्य में, बड़े आयोजनों में भीड़ प्रबंधन की मौजूदा स्थिति, उससे जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ, हालिया घटनाओं से मिले सबक और प्रभावी समाधानों की चर्चा करना बेहद प्रासंगिक होगा, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों से बचा जा सके।
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Sunday, July 27